कैलास-मानसरोवर यात्रा आज से दिल्ली से शुरू हो रही है। कैलास पर्वत को ही भगवान शिव का धाम माना जाता है। वहां तक पहुंचने की इस यात्रा में होता है आस्था, आध्यात्मिकता और रोमांच का समागम..
कैलास मानसरोवर यात्रा में हुई अनुभूति का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। कैलाश पर्वत की परिक्रमा के दौरान मन पर्वत की नैसर्गिकता और दिव्यता से जुड़ जाता है। श्रद्धापूरित मन जैसा स्मरण करता है, शिवमय यह पर्वत उसे वैसा ही रूप दिखा देता है।'- पिछले वर्ष 2010 में कैलास-मानसरोवर की यात्रा पर गए महंत केशव गिरि इस यात्रा से अभिभूत होकर अपनी अनुभूति इस प्रकार व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं, 'यह यात्रा बेशक लंबी और काफी कठिन मार्गो से होकर गुजरती है, लेकिन यह मन को आनंदित करने वाली होती है।' जून से सितबर तक चलने वाली इस यात्रा में सैकड़ों यात्री तिब्बत पहुंचकर आराध्य महादिदेव शिव के धाम का दर्शन करते हैं। कैलास-मानसरोवर यात्रा मात्र आस्था ही नहीं, बल्कि यात्रा के रोमांच के लिए भी प्रसिद्ध है। दो देशों द्वारा संचालित होने वाली इस यात्रा में देश के विभिन्न प्रांतों से लोग एक-साथ इस यात्रा पर जाते हैं, इसलिए उनके बीच भाईचारा भी बढ़ता है। मान्यता है कि कैलास-मानसरोवर शिव का धाम है। विचारक बीडी कसनियाल कहते हैं, 'ध्यान और तप के देवता शिव हैं। शिव के अनुयायी मुक्ति का मार्ग ध्यान और तपस्या को ही मानते हैं। पूरा हिमालय शिव की भूमि है। कैलास पर्वत को ही उनका आवास माना जाता है।'
भगवान शिव का धाम कैलास-मानसरोवर तिब्बत में पड़ता है। तिब्बत इस समय चीन के आधिपत्य में है। जिस कारण यात्रियों को पासपोर्ट, वीजा, स्वास्थ्य परीक्षण जैसी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है।
इस धार्मिक यात्रा का जिम्मा कुमाऊं मंडल विकास निगम को दिया गया है। यात्रा दिल्ली से शुरू होकर काठगोदाम, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ होते हुए आधार शिविर धारचूला पहुंचती है। जहां से दो घंटे की यात्रा वाहन से करने के बाद यात्रा के पैदल पड़ाव तय किए जाते हैं। इन पड़ावों पर याक पशु भी किराये पर किया जा सकता है। प्रत्येक यात्री को दिल्ली और गुंजी पड़ाव पर स्वास्थ्य परीक्षण से गुजरना होता है। सफल यात्री ही कैलाश-मानसरोवर के दर्शन कर पाते हैं। कैलाश-मानसरोवर की परिक्रमा का जिम्मा चीन सरकार का रहता है। परिक्रमा कर वापस दिल्ली लौटने में 28 दिन का समय लगता है।
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